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'भक्तिकाल के रंग' दोहे और चौपाइयों का गेयात्मक काव्य-संग्रह हैl इसमें भक्ति - काल में प्रचलित सगुण और निर्गुण शाखाओं के श्रेष्ठ कवियों और संतों के जीवन एवं रचनाओं को काव्यात्मक रूप में विवेचित करने का एक छोटा सा प्रयास किया गया हैl संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास जी, सूरदास जी और कबीरदास जी आदि के जीवन और रचना - संसार के काव्यात्मक निरूपण का प्रयास हैl उनके जीवन, भाव पक्ष और कला पक्ष के साथ उनके साहित्य में रस, छंद, अलंकार के वर्णन, लोक कल्याणकारी साहित्य के सृजन, लोक हित में आदर्शों का कृतियों के माध्यम से व्यस्थापन , आराध्य तक पहुँचने के रास्ते आदि के सम्बन्ध में पद्यात्मक अभिव्यक्त की गयी हैl भक्ति कालीन कवियों के नीति वचन और उपदेश आज भी अंधेरों में राह दिखाते हैंl जीवन की कठिनाइयों में साहस के साथ अपने इष्ट के प्रति पूर्ण समर्पण और आस्था रखते हुए आगे बढ़ने का बल देते हैंl सर्व प्रमुख बात उनका लोक भाषा में बिलकुल सरल, सहज और सधे हुए कथ्य में इस तरह से कह देना है कि वह जन-मन में रच - बस जाएl आज भी विघटनकारी शक्तियां प्रभावी हैंl पीड़ा, वेदना, उदासी, अवसाद अपने चरम रूप में दिखाई दे जाते हैंl भक्ति काल के नीति वचनों में स्व हित के साथ सर्व लोक हित का भाव निहित हैl इन्ही सब भावों को इस पुस्तक में पिरोने का प्रयास किया गया हैl